Sunday, January 4, 2009

आँख


आंख सिर्फ़ वो नहीं होती जो दिखाती है,

असल आँख तो वो होती है जो दीखते

हुए को ठीक ठीक समझ पाने की कैपेसिटी

पैदा करती है। एक नजर.....


मौसम-बेहद सुहावना

आसमान- साफ़ , हल्का नीला

द्रश्य- एक पहाड़ी का

साउंड-चिडियों की चहचाहट


लॉन्ग शॉट -

एक व्यक्ति सफ़ेद कपडों में अलसाया हुआ

पहाड़ी पर लेटा हुआ। आसपास लहलहाते हुए

ढेर सारेसफ़ेद फूल हवा के चलने की तस्दीक़ करते

हुएखुशगवार मौसम का लुत्फ़ लेते उस व्यक्ति

को देखना एक सुखद अनुभूति.


मिड शॉट- व्यक्ति बड़ी लापरवाही से लेटा हुआ, बल्कि

सोया हुआ है। चिडियों की आवाज ज्यादा साफ़ और तेज

होती हुई। फूल और खूबसूरत लगते और तेजी से लहराते

हुए। सुखद अनुभूति और विस्तृत होती हुई।


क्लोज शॉट- दरअसल वो व्यक्ति सोया हुआ नहीं है

मारा हुआ है। उसका किसी ने सर कुचल दिया है।

उसके सर से खून की धार बह रही है। पहाड़ी से खून की

बूँदें टाप टाप टाप टपक रही हैं।

फूल अब भी लहलहा रहे हैं, चिडियां अब भी चहचहा रही

है, आसमान अब भी साफ़ है। लेकिन अब सुखद अनुभूति

कहीं नहीं है दूर-दूर तक।

जिंदगी क्या ऐसी ही नही है.....?


पिछले दिनों लखनऊ में वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना को सुनने के बाद.......




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