Thursday, March 26, 2009

रिल्के से एक सवाल

वैसे तो इन दिनों ऐसे लोग ही कम मिलते हैं जो यह पूछें की अच्छा कैसे लिखा जाए क्योंकि इन दिनों हर किसी को यही लगता है की वो सर्वश्रेष्ठ लिखता है। फ़िर भी कभी किसी चेहरे पर कप्पुस के सवाल नज़र आते हैं तो अच्छा लगता है। जब सवाल कप्पुस के से हों तो जवाब भी रिल्के का ही होना चहिये।
'एक ही काम है जो तुम्हें करना चाहिए - अपने में लौट जाओ। उस केन्द्र को ढूंढो जो तुम्हें लिखने का आदेश देता है। जानने की कोशिश करो कि क्या इस बाध्यता ने तुम्हारे भीतर अपनी जड़ें फैला ली हैं ? अपने से पूछो कि यदि तुम्हें लिखने की मनाही हो जाए तो क्या तुम जीवित रहना चाहोगे ?...अपने को टटोलो...इस गंभीरतम ऊहापोह के अंत में साफ-सुथरी समर्थ 'हाँ'' सुनने को मिले, तभी तुम्हें अपने जीवन का निर्माण इस अनिवार्यता के मुताबिक करना चाहिए।'

1 comment:

Anonymous said...

आपका यह पोस्‍ट पढकर लिखने और न लिखने की दुश्‍वारियों में जिस ब्‍लागर भाई को फंसना है फंसे। मैं तो यह कहते हुए पार पाना चाहता हूं कि-

कभी झरना कभी दरिया कभी समन्‍दर सा
जहन में उठता है अकसर कोई बवंडर सा

अपनी औकात से बाहर निकल जाता है
कितना कमजर्फ है गुब्‍बारा एक सुंदर सा।

लेखकीय विचारों का बवंडर पैदा करने का शुक्रिया--