Thursday, June 11, 2009

पाब्लो नेरुदा - लिख सकता हूँ दर्द भरी कविता

ऐसा कोई कविता प्रेमी नहीं होगा समूचे विश्व में जो पाब्लो नेरूदा की कविताओं से नावाकिफ हो. लेकिन पाब्लो नेरूदा से मेरा पहला जुड़ाव होने की वजह कविता नहीं थी. कच्ची उम्र में हमारे भीतर कुछ अजीब किस्म के हठ बैठ जाते हैं. उन्हीं की उत्पत्ति होते हैं कुछ लगाव भी और दुराव भी. पाब्लो की कविताओं को पहली बार हाथ इस वजह से लगाया था कि उन्हें गैब्रिएला मिस्त्राल ने तराशा था. जी हां, वही नोबेल प्राइज विनर गैब्रिएला. मेरा गैब्रिएला पर विश्वास था और गैब्रिएला का उन पर. यह विश्वास ही मेरे पाब्लो नेरूदा की कविताओं के करीब जाने की वजह बना. वजह कुछ भी हो लेकिन जाना इतना सार्थक था कि वह सार्थकता अब तक हर कदम पर साथ निभाती है. उनके विश्व प्रसिद्ध काव्य संग्रह ट्वेंटी लव पोयम्स एंड अ सांग ऑफ डिसैपियर ने दुनिया भर को अपना दीवाना बनाया हुआ है. इसका हिंदी में अनुवाद संवाद प्रकाशन ने किया जो हाल ही में मेरे हाथ लगा. यह अनुवाद अशोक पांडे जी ने किया है. बीस प्रेम कविताएं और हताशा का एक गीत. इसी संग्रह से एक कविता यहां प्रस्तुत है. इस संग्रह की एक और उपलब्धि है पाब्लो नेरूदा का बेहद महत्वपूर्ण साक्षात्कार. इस साक्षात्कार का अनुवाद वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल जी ने किया है. यह साक्षात्कार कई लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है. इसके कुछ बेहद संक्षिप्त अंश भी यहां जरूर डालूंगी सिर्फ पाब्लो नेरूदा के प्रति भूख जगाने के लिए. क्योंकि पढऩे की भूख मिटाने के लिए तो किताबों तक जाना ही होगा। - प्रतिभा

लिख सकता हूं आज की रात बेहद दर्द भरी कवितायें
लिख सकता हूं उदाहरण के लिए: तारों भरी है रात

और तारे हैं नीले कांपते हुए
सुदूर रात की हवा चक्कर काटती आसमान में गाती है।

लिख सकता हूं आज की रात बेहद दर्द भरी कवितायें
मैंने प्रेम किया उसे और कभी-कभी उसने भी प्रेम किया मुझे
ऐसी ही रातों में मैं थामे रहा उसे अपनी बांहों में
अनंत आकाश के नीचे मैंने उसे बार-बार चूमा।

उसने प्रेम किया मुझे और कभी-कभी मैंने भी प्रेम किया उसे
कोई कैसे प्रेम नहीं कर सकता था उन महान और ठहरी हुई आंखों को।

लिख सकता हूं आज की रात बेहद दर्द भरी कवितायें

सोचना कि मेरे पास नहीं है वह।
महसूस करना कि उसे खो चुका मैं।
सुनना इस विराट रात को जो और भी विराट है उसके बगैर
और कविता गिरती है आत्मा पर जैसे चरागाह पर ओस।


अब क्या फर्क पड़ता है कि मेरा प्यार संभाल नहीं पाया उसे
तारों भरी है रात और वह नहीं है मेरे पास।


(वान गौग का चित्र गूगल से साभार)

3 comments:

sanjay vyas said...

कबाड़खाना पर कभी ये कविता और जिस अंग्रेजी अनुवाद से इसे हिंदी में अनुदित किया गया था, दोनों पढीं थी.आज आपने इस बेहद सुंदर कविता का फिर से आचमन करवाया उसके लिए शुक्रिया. अपनी विश्व साहित्य में ज्यादा फेरी नहीं लगती पर हाँ कुछ चिट्ठे जिनमे आपका भी शामिल है, त्वरित प्रदक्षिणा करवा देते है,जिससे परिचित होने का मौका मिल जाता है. बहरहाल शुक्रिया.

शरद कोकास said...

पाब्लो नेरुदा की कवितायें जीने का अह्सास कराती है इनकी गहराई मे डूबना जरुरी है.कुमार अम्बुज ने भी अपने ब्लॉग पर नेरुदा की कवितायें दी हैं

Science Bloggers Association said...

पाब्‍लो नरूदा को पढना एक नया जीवन जीने के समान है।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }